Check bounce: आज के डिजिटल युग में भी चेक से वित्तीय लेनदेन का महत्व कम नहीं हुआ है। भारत में अधिकांश व्यापारिक और बड़े वित्तीय लेनदेन अभी भी चेक के माध्यम से किए जाते हैं। नई तकनीकों और ऑनलाइन बैंकिंग की उपलब्धता के बावजूद, लोग बड़े वित्तीय लेनदेन के लिए चेक को अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय मानते हैं। चेक से लेनदेन करते समय कई लोग चेक से संबंधित नियमों और कानूनी प्रावधानों की पूरी जानकारी न होने के कारण कानूनी परेशानियों का सामना करते हैं। चेक बाउंस होने पर क्या होता है और किन परिस्थितियों में मुकदमा दर्ज हो सकता है, इसकी जानकारी होना आवश्यक है।
चेक बाउंस क्या होता है?
जब कोई व्यक्ति अपने बैंक खाते से भुगतान के लिए चेक जारी करता है और वह चेक बैंक द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है, तो इसे चेक बाउंस कहते हैं। चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं – जैसे खाते में पर्याप्त धनराशि का न होना, चेक पर हस्ताक्षर का मेल न खाना, चेक का अवैध होना या बैंक द्वारा चेक को अमान्य करार देना। चेक बाउंस होने पर भारतीय कानून के अनुसार परिणामस्वरूप लेनदेन करने वाले व्यक्ति को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
चेक बाउंस होने पर बैंक की प्रारंभिक कार्रवाई
बैंक चेक बाउंस होने की स्थिति में तुरंत कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करता है। सबसे पहले बैंक चेक जारी करने वाले व्यक्ति को नोटिस भेजता है। यह नोटिस आमतौर पर तीन महीने तक भेजा जाता है। इस नोटिस में बैंक ग्राहक को चेक बाउंस होने की सूचना देता है और उनसे इस मामले का समाधान करने का अनुरोध करता है। यदि ग्राहक तीन महीने के भीतर इस नोटिस का जवाब नहीं देता या चेक की राशि का भुगतान नहीं करता, तो बैंक या जिसके पक्ष में चेक जारी किया गया था, वह व्यक्ति अदालत में मुकदमा दाखिल कर सकता है।
चेक बाउंस पर कानूनी प्रावधान
चेक बाउंस मामलों में भारतीय कानून के अनुसार नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत कार्रवाई की जाती है। इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपने बैंक खाते से चेक जारी करता है और वह चेक अपर्याप्त धनराशि या अन्य कारणों से बाउंस हो जाता है, तो उस व्यक्ति पर मुकदमा दायर किया जा सकता है। दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को दो साल तक की कैद या चेक की राशि से दोगुनी राशि तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का नया फैसला
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चेक बाउंस से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जिन बैंकों का किसी अन्य बैंक में विलय हो चुका है, उनके चेक का अनादर (बाउंस) होने पर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध गठित नहीं होगा। अर्थात ऐसे मामलों में ग्राहक पर कोई कानूनी मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता है।
यह फैसला इंडियन बैंक में विलय हो चुके इलाहाबाद बैंक के चेक के अनादर के एक मामले में आया है। न्यायमूर्ति अरुण सिंह देशवाल ने बांदा की अर्चना सिंह गौतम की याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है। इस मामले में इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में 1 अप्रैल 2020 को विलय हुआ था, और इसके चेक 30 सितंबर 2021 तक मान्य थे। इसके बाद जारी किए गए इलाहाबाद बैंक के चेक को बैंक द्वारा अमान्य करार दे दिया गया था।
न्यायालय का तर्क
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एनआई एक्ट की धारा 138 के अनुसार यदि कोई चेक बैंक द्वारा अमान्य घोषित किया जाता है, तो उस पर धारा 138 का अपराध गठित नहीं होता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एनआई एक्ट के अनुसार जारी किया गया चेक वैध होना चाहिए, तभी उसके बाउंस होने पर अपराध गठित होता है।
इस मामले में, चूंकि इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय हो चुका था और विलय के बाद निर्धारित समयावधि (30 सितंबर 2021) के बाद इलाहाबाद बैंक के चेक अमान्य हो गए थे, इसलिए ऐसे चेक के बाउंस होने पर कोई कानूनी अपराध नहीं बनता है। कोर्ट ने इस आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज मुकदमे को खारिज कर दिया।
चेक बाउंस से बचने के उपाय
चेक बाउंस से बचने के लिए चेक जारी करने से पहले कुछ सावधानियां बरतना आवश्यक है। सबसे पहले, यह सुनिश्चित करें कि आपके खाते में पर्याप्त धनराशि मौजूद है। चेक पर सही जानकारी और स्पष्ट हस्ताक्षर होने चाहिए। बैंकों के विलय होने की स्थिति में, यह जांच लें कि आपके द्वारा उपयोग किए जा रहे चेक अभी भी वैध हैं या नहीं।
यदि किसी कारण से आपका चेक बाउंस हो जाता है, तो तुरंत बैंक से संपर्क करें और मामले को सुलझाने का प्रयास करें। बैंक द्वारा भेजे गए नोटिस का जवाब समय पर दें और यदि संभव हो तो चेक की राशि का भुगतान कर दें। यह कानूनी जटिलताओं से बचने का सबसे अच्छा तरीका है।
चेक बाउंस मामलों में जागरूकता की आवश्यकता
वित्तीय लेनदेन के लिए चेक का उपयोग करने वाले लोगों को चेक से संबंधित नियमों और कानूनी प्रावधानों की जानकारी होना आवश्यक है। इससे अनावश्यक कानूनी परेशानियों से बचा जा सकता है। बैंकों को भी अपने ग्राहकों को चेक से संबंधित नियमों और उनके परिवर्तनों के बारे में नियमित रूप से सूचित करना चाहिए।
खासकर बैंकों के विलय के मामले में, ग्राहकों को पुराने बैंक के चेक की वैधता अवधि के बारे में स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए और उन्हें नए चेक बुक प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे चेक बाउंस से संबंधित मामलों में कमी आएगी और वित्तीय लेनदेन अधिक सुचारू रूप से हो सकेंगे।
चेक से लेनदेन करते समय उचित जानकारी और सावधानी बरतना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का हालिया फैसला यह स्पष्ट करता है कि बैंकों के विलय के बाद अमान्य चेक पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। लेकिन यह भी ध्यान रखें कि यह विशेष मामला है, और सामान्य परिस्थितियों में चेक बाउंस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। इसलिए हमेशा बैंकिंग नियमों और चेक से संबंधित प्रावधानों की अद्यतन जानकारी रखें और विवेकपूर्ण वित्तीय निर्णय लें।
यह आर्टिकल केवल सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है। किसी भी कानूनी निर्णय से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।